मस्ती में खेलना, निडर घूमना। मन के हम कच्चे थे ।
वो दिन कितने अच्छे थे । जब हम छोटे बच्चे थे ।।
दिन गुजरे कुछ इस तरह, सूरज डूबा जिस तरह । हम अभी मन के कच्चे थे ।
वो दिन कितने अच्छे थे । जब हम छोटे बच्चे थे ।।
बच्पन गया जवानी आई, साथ में सामाजिक बेड़ियाँ लाई । मन के हम अभी तक कच्चे थे ।
वो दिन कितने अच्छे थे । जब हम छोटे बच्चे थे ।।
समाज और ज़िमेदारी का ये कैसा मेल । टूट गई बच्पन की वो रेल । अब नहीं हम बच्चे थे ।
वो दिन कितने अच्छे थे । जब हम छोटे बच्चे थे ।।
वो दिन आ नहीं सकते चाहे कर दो कुछ भी सेल ।
बच न पाता कोई यहाँ, प्रकृति का ये कैसा खेल । हम जब मासूम और सच्चे थे ।
वो दिन कितने अच्छे थे । जब हम छोटे बच्चे थे ।
शिकवा करें किस से इस नियम कठोर का ।
छोड़ी हुई मंज़िल को जोड़ता नहीं सिरा किसी डोर का । हम जब सबके अच्छे थे ।